खड़े हैं मुझको ख़रीदार देखने के लिए
खड़े हैं मुझको ख़रीदार देखने के लिए,
मै घर से निकला था बाज़ार देखने के
लिए।
हज़ार बार हज़ारों की सम्त देखते हैं,
तरस गए तुझे एक बार देखने के
लिए।।
क़तार में कई नाबीना लोग शामिल हैं,
अमीरे-शहर का दरबार देखने के
लिए।
जगाए रखता हूँ सूरज को अपनी पलकों पर,
ज़मीं को ख़्वाब से बेदार देखने के
लिए।।
अजीब शख़्स है लेता है जुगनुओ से ख़िराज़,
शबों को अपने चमकदार देखने के
लिए।
हर एक हर्फ़ से चिंगारियाँ निकलती हैं,
कलेजा चाहिए अख़बार देखने के
लिए।।
लेखक: राहत इंदौरी