Mahatma Gandhi Biography
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे और माता पुतलीबाई अत्यंत धार्मिक महिला थीं। गांधी जी की पत्नी का नाम कस्तूरबा गांधी था जिनका जीवन संघर्ष से भरा और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका भी थी। गांधी जी के पुत्रों के नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास गांधी था। गांधी जी का हिंदू धर्म में विश्वास, गीता और अहिंसा में आस्था, तथा सभी धर्मों के प्रति उनके विचार उच्च थे। गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर और राजकोट में हुई। उन्होंने लंदन के इनर टेम्पल से कानून की पढ़ाई की और 1891 में बैरिस्टर बने।
गुलामी के बावजूद गांधी जी विदेश में कैसे पढ़ सके?
उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था, लेकिन उच्च वर्ग के भारतीयों को सीमित रूप में उच्च शिक्षा की अनुमति थी। ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के लिए अंग्रेजी शिक्षा की व्यवस्था की थी ताकि वे प्रशासनिक कार्यों में सहायक बन सकें। गांधी जी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी और वे राजकोट के दीवान परिवार से थे, जिसके कारण उनके लिए इंग्लैंड जाकर पढ़ाई करना संभव हुआ।
ब्रिटिश राज के अंतर्गत अमीर और प्रभावशाली भारतीय परिवारों के बच्चे विदेश में पढ़ सकते थे, बशर्ते वे ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का पालन करें। गांधी जी को इंग्लैंड भेजने में उनके बड़े भाई लक्ष्मीदास गांधी और शेट गोपालदास (एक व्यापारी) का सहयोग मिला। इसके अलावा, उनकी माँ और अन्य परिजनों की शर्त थी कि वे विदेश में मांस-मदिरा का सेवन नहीं करेंगे।
दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष
1893 में, गांधी जी एक कानूनी मामले के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए। वहां रंगभेद की नीति के तहत भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव ने उन्हें झकझोर दिया। 1915 तक दक्षिण अफ्रीका में रहे और वहाँ ‘सत्याग्रह’ आंदोलन की नींव रखी। यह आंदोलन अहिंसा और सविनय अवज्ञा पर आधारित था।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
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चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह (1917-18) – किसानों को नील की खेती के दमनकारी कानूनों से मुक्त कराने के लिए उन्होंने आंदोलन किया।
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असहयोग आंदोलन (1920-22) – इस दौरान भारतीयों ने ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार किया और सरकारी नौकरियों से इस्तीफा दिया।
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नमक सत्याग्रह (1930) – 12 मार्च को 78 अनुयायियों के साथ गांधी जी ने दांडी यात्रा शुरू की और नमक कानून तोड़ा।
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भारत छोड़ो आंदोलन (1942) – यह आंदोलन अंग्रेजों को भारत से तुरंत निकालने के लिए किया गया था।
गोलमेज सम्मेलन: गांधी जी की भूमिका
गोलमेज सम्मेलन 1930-32 के बीच ब्रिटिश सरकार द्वारा लंदन में आयोजित किया गया था। इसका उद्देश्य भारतीय सुधारों पर चर्चा करना था। यह तीन चरणों में हुआ:
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प्रथम गोलमेज सम्मेलन (1930) – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बहिष्कार किया।
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द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931) – इसमें गांधी जी ने भाग लिया।
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तृतीय गोलमेज सम्मेलन (1932) – कांग्रेस ने फिर से भाग नहीं लिया।
गोलमेज सम्मेलन के समय भारत में गवर्नर कौन था?
गोलमेज सम्मेलन (1930-32) के समय भारत में ब्रिटिश गवर्नर-जनरल और वायसराय लॉर्ड इरविन (1926-1931) थे। उनके बाद लॉर्ड विलिंगडन (1931-1936) ने पदभार संभाला।
गांधी जी को गोलमेज सम्मेलन में क्यों बुलाया गया?
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931) में गांधी जी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एकमात्र प्रतिनिधि बनाकर बुलाया गया था। इसके पीछे मुख्य कारण थे:
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सविनय अवज्ञा आंदोलन की सफलता – नमक सत्याग्रह और ब्रिटिश उत्पादों के बहिष्कार से अंग्रेजों को भारत में प्रशासनिक दिक्कतें हो रही थीं।
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गांधी-इरविन समझौता (1931) – लॉर्ड इरविन ने गांधी जी से समझौता किया कि वे आंदोलन समाप्त कर देंगे, बदले में राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाएगा और कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी।
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अंग्रेजों की चिंता – 1930 के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों ने ब्रिटिश सरकार को कमजोर कर दिया था। वे भारतीय नेताओं से बातचीत करके हल निकालना चाहते थे ताकि प्रशासन पर दबाव कम हो।
भारत के लोग क्या चाहते थे कि गांधी जी गोलमेज सम्मेलन में क्या मांगें?
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भारत को तत्काल स्वशासन देने की स्पष्ट मांग।
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क्रांतिकारियों के लिए रिहाई की मांग।
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औपनिवेशिक करों और अन्य दमनकारी कानूनों की समाप्ति।
गांधी जी ने क्या किया?
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उन्होंने सिर्फ ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग को दोहराया और दलितों के लिए पृथक निर्वाचन का विरोध किया।
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भगत सिंह की सजा पर कोई ठोस दबाव नहीं डाला। जबकि गांधी-इरविन समझौते में इरविन ने कहा था कि आप राजनीतिक बंदियों को रिहा कराने का आग्रह कीजिएगा, जिस पर विचार किया जाएगा।
गांधी जी की आलोचनाएँ
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मुस्लिम तुष्टीकरण –
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1947 में देश विभाजन के समय गांधी जी ने मुस्लिमों के प्रति अधिक नरमी दिखाई।
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मोहम्मद अली जिन्ना के अलगाववादी विचारों के बावजूद उन्होंने उनके साथ कई बार समझौता किया।
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पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलाने के लिए उन्होंने उपवास किया, साथ ही और भी कई काम, जिससे नाथूराम गोडसे सहित कई राष्ट्रवादी असंतुष्ट थे।
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भगत सिंह को फाँसी से न बचा पाना –
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भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फाँसी 23 मार्च 1931 को हुई।
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इस समय गांधी जी ब्रिटिश सरकार के साथ गोलमेज सम्मेलन में थे, और गांधी इरविन समझौते में यह तय था कि आप वहां कैदियों के रिहाई की बात कर सकते हैं, जिस पर विचार किया जाएगा, लेकिन उन्होंने उनके लिए वहां प्रयास नहीं किए।
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सुभाष चंद्र बोस और अन्य क्रांतिकारी गांधी जी पर भगत सिंह की मौत रोकने में असफल रहने का आरोप लगाते हैं।
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गांधी जी की हत्या का संभावित कारण
- मुस्लिम तुष्टीकरण – गांधी जी के उपवास के कारण भारत सरकार को पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने पड़े। हालांकि हमारे विचार से पैसे दे देना ठीक था, नहीं तो आज तक यह आरोप लगता कि भारत पैसे खाकर बैठ गया।
भारत विभाजन की बात को लेकर समाज के बहुत सारे लोग जानना चाहते हैं कि क्या खुद की जान जाने के डर से महात्मा गांधी जी हिंदुओं की जान बचाने के लिए पाकिस्तान नहीं गए थे?
तो इसका उत्तर है - नहीं ! गांधी जी को पाकिस्तान जाने का कोई औचित्य नहीं था। वहां के लिए जिन्ना काफी थे। समाज के एक वर्ग का मानना था कि मुसलमानों को भारत में संरक्षित रखने और उन्हें हिंदुओं के प्रकोप से बचाने के लिए गांधी जी का भारत में रहना आवश्यक था। अगर गांधी पाकिस्तान चले जाते, तो हिन्दुस्तान में सरदार पटेल मुस्लिमों पर हावी हो जाते। बेचारे जवाहरलाल नेहरू अकेले पड़ जाते। वैसे भी तब की कांग्रेस पार्टी में बिना महात्मा गांधी व सरदार पटेल के मुकाबले नेहरू की हैसियत बौने से भी गई गुजरी थी। यह ख्याल तो आप मन से निकाल ही दो कि हिन्दुओं को बचाने की बात गांधी जी ने सपने में भी सोची हो !
कट्टर हिन्दू संगठन मानते थे कि पूरी जिंदगी महात्मा गांधी जी ने मुस्लिमों का बचाव करने और हिंदुओं की जड़ खोदने में बिता दी। देश का विभाजन तो 1947 में हुआ। उन्होंने हिंदुओं की जड़ में मठ्ठा डालने का काम तो 1919 के खिलाफत आन्दोलन का समर्थन करने से ही चालू कर दिया था। हिंदुओं के खिलाफ गांधी की कटुता कभी कम नहीं हुई और इसे सार्वजनिक रूप से मानने में उन्होंने कभी परहेज भी नहीं किया। भले ही भगतसिंह को बचाने की महात्मा गांधी जी ने कोशिश न की हो लेकिन स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती और महाशय राजपाल के मुस्लिम हत्यारों अब्दुल रशीद और इल्मदीन को बचाने का गांधी जी ने भरपूर प्रयास किया। हो सकता है कि वे अहिंसा दिखाने के लिए ऐसा किए हों, क्योंकि वे अहिंसा के पुजारी भी तो थे। क्योंकि वे कई बार मुसलमानों व कुरान के कट्टर नियमों की आलोचना भी करते थे। परन्तु यह गांधी जी की बदकिस्मती थी कि वह उन मुस्लिम हत्यारों को बचा नहीं पाए लेकिन जिस दिन महाशय राजपाल के हत्यारे इल्मदीन को फांसी हुई, गांधी जी ने अपने समाचार पत्र " यंग इंडिया " में इस सज़ा की निंदा भी की तथा उस दिन को भारत का काला दिन करार कर दिया था।
- हिन्दुओं की उपेक्षा – गोडसे का मानना था कि गांधी जी केवल मुस्लिमों के अधिकारों की बात करते थे। हालांकि मई 1936 में, 48 वर्ष की आयु में, उनके पुत्र हरिलाल ने सार्वजनिक रूप से इस्लाम धर्म अपना लिया और अपना नाम अब्दुल्ला गांधी भी रख लिया। बाद में उन्होंने पुनः हिंदू धर्म अपना लिया।
कई लेखों के अध्ययन के बाद समझ आता है कि उस ज़माने में कांग्रेस हिन्दुओं की प्रतिनिधि पार्टी मानी जाती थी और मुस्लिम लीग मुसलमानों की। गांधी जी और कांग्रेस इस धारणा को मिटाना चाहते थे और मुसलमानों की नजर में भी कांग्रेस अच्छा हो इसीलिए उनके कुछ निर्णय मुस्लिम पक्ष की ओर झुके दिखाई देते थे, जिससे हिन्दुओं के एक वर्ग को हमेशा रोष होता था और कट्टर हिन्दुवादी संगठन जैसे हिन्दू महासभा उनका विरोध करते थे और यही अन्त में उनकी जघन्य हत्या का कारण भी बना।
- देश विभाजन – गांधी जी विभाजन रोकने में असफल रहे, जिससे लाखों हिन्दू और सिख मारे गए।