डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की बायोग्राफी: ऐतिहासिक और तर्कपूर्ण जीवनी

डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की बायोग्राफी: ऐतिहासिक और तर्कपूर्ण जीवनी, इसमें वह ढेरों टॉपिक शामिल हैं जो उनके जीवन में घटित हुए हैं, तो अभी पढ़िए ...

BIOGRAPHY OF DR. BR AMBEDKAR

भारत के सामाजिक न्याय के इतिहास में यदि किसी एक व्यक्तित्व ने क्रांति की मशाल जलाकर करोड़ों शोषितों, वंचितों और दलितों को नई दिशा दी, तो वह थे डॉ. भीमराव अंबेडकर। वे न केवल एक महान समाज सुधारक, विधिवेत्ता और अर्थशास्त्री थे, बल्कि भारतीय संविधान के निर्माण में अमूल्य योगदान देने वाले और मानव अधिकारों के सजग प्रहरी भी थे। उनका जीवन संघर्षों की गाथा है—एक ऐसा सफर जो समाज के सबसे निचले पायदान से उठकर राष्ट्र निर्माण की सबसे ऊँची कुर्सी तक पहुँचा।

डॉ. अंबेडकर जी ने न केवल छुआछूत और जातिवाद जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध आवाज उठाई, बल्कि समानता, शिक्षा, और आत्म-सम्मान के मूल्यों को स्थापित किया। उन्होंने अपने ज्ञान, बुद्धि और अद्वितीय नेतृत्व क्षमता के बल पर न केवल भारत को एक आधुनिक, लोकतांत्रिक संविधान प्रदान किया, बल्कि पूरी दुनिया को यह दिखाया कि किसी भी सामाजिक बंधन को तोड़ा जा सकता है—यदि व्यक्ति के पास आत्मबल, संकल्प और लक्ष्य हो।

BIOGRAPHY OF DR. BHIMRAO AMBEDKAR

यह जीवनी न केवल डॉ. अंबेडकर के जीवन की घटनाओं का क्रम है, बल्कि यह उन विचारों और मूल्यों की यात्रा भी है, जिन्होंने भारत को एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज बनने की दिशा में अग्रसर किया।

TABLE OF CONTENTS

जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

  • जन्म: 14 अप्रैल 1891, महू (अब मध्य प्रदेश) में।
  • पूरा नाम: भीमराव रामजी अंबेडकर।
  • जाति: महार (उनके समय में महाराष्ट्र में अछूत समझी जाने वाली जाति)।
  • पिता: रामजी मालोजी सकपाल – ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार।
  • माता: भीमाबाई सकपाल।

जन्म के समय भारत और उनके समाज की स्थिति

  • भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था।
  • दलितों को स्कूल में बैठने, सार्वजनिक जल पीने, मंदिर जाने, या यहां तक कि उच्च जातियों के सामने जूते पहनने की भी अनुमति नहीं थी।
  • महार जाति के लोग जिस रास्ते से गुजरते, उनके जाने के बाद उन सड़कों पर शुद्धिकरण के नाम पर पानी छिड़का जाता था — यह छुआछूत की क्रूरता का प्रतीक था।

शिक्षा और संघर्ष

  • प्रारंभिक शिक्षा: जब वे स्कूल जाते थे, उन्हें कक्षा के बाहर बैठाया जाता था और पानी पीने को भी कोई पात्र नहीं मिलता था।
  • एल्फिंस्टन कॉलेज, बॉम्बे: पहले दलित छात्र जिन्होंने कॉलेज में प्रवेश लिया।
सवाल: जब भेदभाव था, तो वे कैसे पढ़े?
  • उत्तर: उनके पिता शिक्षित थे और सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद बच्चों की पढ़ाई पर जोर दिया।
  • सहायता: बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ (मूल नाम: श्रीमंत गणपतराव गायकवाड़, मराठा वंश के एक राजघराने से थे और गायकवाड़ राजवंश के शासक थे, जिन्होंने बड़ौदा रियासत, अब गुजरात पर शासन किया था।) ने अंबेडकर को 1913 में छात्रवृत्ति दी जिससे वे अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय पढ़ने गए।

विदेश में शिक्षा

  • कोलंबिया यूनिवर्सिटी (1913–1917):
    • विषय: अर्थशास्त्र, राजनीति, समाजशास्त्र, दर्शन।
    • थीसिस: The Evolution of Provincial Finance in British India
  • लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स:
    • डी.एससी. (Doctor of Science) की उपाधि।
    • साथ ही Gray’s Inn से कानून की डिग्री (Barrister-at-Law) भी प्राप्त की।

विवाह और दूसरा विवाह

  • पहली पत्नी: रमाबाई (1906 में विवाह हुआ) – दलित समाज की महिला।
    • उनका निधन 1935 में हो गया।
  • दूसरी पत्नी: डॉ. साविता अंबेडकर (ब्राह्मण) – 1948 में विवाह हुआ।
    • विवाह का कारण: डॉ. अंबेडकर मधुमेह, रक्तचाप और अन्य बीमारियों से ग्रसित थे। साविता डॉक्टर थीं और उन्होंने डॉ. अंबेडकर की सेवा की। उनका विवाह एक सहमति पर आधारित था, न कि किसी भावनात्मक या सामाजिक निर्णय पर।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

  • वे गांधी या नेहरू की तरह 'राजनीतिक आजादी' के समर्थक नहीं थे, बल्कि 'सामाजिक स्वतंत्रता' के लिए संघर्ष कर रहे थे।
  • दलितों के लिए पृथक निर्वाचिका (Separate Electorate) की माँग की थी, जिससे गांधी जी ने विरोध में आमरण अनशन किया।
  • पूना समझौता (1932): गांधी और अंबेडकर के बीच समझौता हुआ, जिससे दलितों को आरक्षण मिला लेकिन पृथक निर्वाचन नहीं।

संविधान निर्माण: संपूर्ण विवरण

भारत की संविधान सभा (Constituent Assembly)

  • गठन की तिथि: 9 दिसंबर 1946
  • कुल सदस्य: प्रारंभ में 389 सदस्य (ब्रिटिश भारत से 292, रियासतों से 93, और चीफ कमिशनरीज़ से 4)।
    • विभाजन के बाद पाकिस्तान के सदस्य हटने पर संख्या घटकर 299 हो गई।

प्रमुख पदाधिकारी (संविधान निर्माण में)

डॉ. राजेंद्र प्रसाद – अध्यक्ष (President of the Constituent Assembly)

  • संविधान सभा की समस्त कार्यवाही की अध्यक्षता की।
  • वे पहले स्थायी अध्यक्ष बने और बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति भी बने।

हिचेन्द्रनाथ बसु – अंतरिम अध्यक्ष (Temporary President)

  • 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक में अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किए गए थे, जब तक स्थायी अध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ।

जवाहरलाल नेहरू – संविधान उद्देशिका प्रारूप समिति के अध्यक्ष (Head of the Objectives Resolution Committee)

  • उन्होंने Objectives Resolution (उद्देशिका प्रस्ताव) प्रस्तुत किया, जो बाद में संविधान की प्रस्तावना (Preamble) का आधार बनी।

डॉ. भीमराव अंबेडकर – प्रारूप समिति (Drafting Committee) के अध्यक्ष

  • प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त 1947 को हुआ।
  • उन्होंने संविधान के प्रारूप को विधिक, सामाजिक और समावेशी भाषा में प्रस्तुत किया।

प्रारूप समिति (Drafting Committee) के सदस्य और उनका योगदान

नाम पद/भूमिका
डॉ. भीमराव अंबेडकर अध्यक्ष
एन. गोपालस्वामी आयंगर सदस्य (बाद में जोड़े गए)
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी सदस्य – संवैधानिक भाषा और
सांस्कृतिक पहलुओं में योगदान
टी.टी. कृष्णमाचारी सदस्य – उन्होंने संसद में कहा:
Dr. Ambedkar is the pilot,
but all of us are co-workers.
अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर सदस्य – महान विधिवेत्ता
सैयद मोहम्मद सादुल्ला सदस्य – अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर फोकस
बी.एल. मित्तल सदस्य – बाद में त्याग पत्र दिया
डी.पी. खेतान सदस्य – मृत्यु के बाद उनका स्थान
एन. गोपालस्वामी ने लिया
नोट: डॉ. अंबेडकर जी ने खुद कहा था कि संविधान का निर्माण केवल उन्होंने नहीं किया, बल्कि यह संपूर्ण समिति का सामूहिक कार्य था।

अन्य प्रमुख समितियाँ और सदस्य

समिति अध्यक्ष
रिपोर्टिंग समिति डॉ. राजेंद्र प्रसाद
यूनियन पावर्स कमेटी जवाहरलाल नेहरू
स्टेट्स कमेटी (रियासतों से संबंधित) सरदार वल्लभभाई पटेल
फाइनेंस एंड टैक्सेशन कमेटी जॉन मथाई
रूल्स ऑफ प्रोसीजर कमेटी डॉ. राजेंद्र प्रसाद
स्टीयरिंग कमेटी डॉ. राजेंद्र प्रसाद
अल्पसंख्यक अधिकार समिति सरदार वल्लभभाई पटेल
फंडामेंटल राइट्स सब-कमेटी जे.बी. कृपलानी

अन्य महत्वपूर्ण सदस्यों में शामिल थे:

⨀ पुरुषोत्तम दास टंडन
(उत्तर प्रदेश)

👉 हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के समर्थक, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में प्रमुख योगदान।
⨀ हंसराज मेहता (बॉम्बे प्रेसीडेंसी – वर्तमान गुजरात)
👉 मानवाधिकारों और सामाजिक समानता के पक्षधर।
⨀ फ्रैंक एंथनी (अंग्रेज़ी एंग्लो-इंडियन समुदाय के प्रतिनिधि – ऑल इंडिया बेसिस)
👉 अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए संघर्षरत।
के.टी. शाह (बिहार)
👉 समाजवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक, समानता और धर्म-निरपेक्षता के पक्षधर।
⨀ के.एम. मुंशी (बॉम्बे प्रेसीडेंसी – वर्तमान महाराष्ट्र/गुजरात)
👉 भारत की सांस्कृतिक पहचान के प्रवक्ता, कई महत्वपूर्ण धाराओं की भाषा उन्होंने गढ़ी।
⨀ महावीर त्यागी (उत्तर प्रदेश)
👉 तेजस्वी वक्ता, सादगी और सच्चाई के प्रतीक, किसान और सैनिक हितों की वकालत की।
⨀ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (बंगाल)
👉 शिक्षा, उद्योग और राष्ट्रवाद से संबंधित विषयों में योगदान, बाद में जनसंघ (वर्तमान BJP) के संस्थापक।

संविधान को लिपिबद्ध किसने किया?

  • प्रेम बिहारी नारायण रायजादा, एक प्रख्यात कैलिग्राफर थे जिन्होंने पूरे संविधान को हिंदी और अंग्रेजी में सुंदर हस्तलिपि में लिखा।
  • उन्होंने कोई शुल्क नहीं लिया, बस उनकी शर्त थी कि हर पृष्ठ पर उनका नाम लिखा जाए – और ये मान लिया गया।

भारत की राष्ट्रभाषा 'संस्कृत' के समर्थक

डॉ. भीमराव अंबेडकर जी वास्तव में चाहते थे कि संस्कृत भारत की राष्ट्रभाषा (National Language) हो। इसके लिए उन्होनें 11 सितंबर 1949 को संविधान सभा की चर्चा में एक प्रस्ताव भी रखा, जिसे कई सदस्यों ने समर्थन दिया, लेकिन कांग्रेस के अधिकांश सदस्यों ने समर्थन नहीं दिया।

बाबा साहेब ने इस विषय पर प्रत्यक्ष रूप से कहा था कि अगर कोई ऐसी भाषा है जो संविधान की भाषा बनने के योग्य है, तो वह संस्कृत है – क्योंकि वह भारतीय परंपरा की जड़ में है और तटस्थ है। हालांकि, बाद में हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों को आधिकारिक भाषा बनाया गया, लेकिन संस्कृत का यह विचार संविधान सभा में गंभीरता से चर्चा में रहा।

तकनीकी रूप से भारत की कोई भी भाषा "राष्ट्रभाषा" (National Language) घोषित नहीं की गई है। भारत के संविधान में "राजभाषा" (Official Language) का प्रावधान है, न कि "राष्ट्रभाषा" का।

संविधान में अनुच्छेद 343 के अनुसार: हिंदी (देवनागरी लिपि में) को भारत की राजभाषा घोषित किया गया है।साथ ही, अंग्रेज़ी को भी एक सहयोगी भाषा के रूप में रखा गया, जिसे संविधान लागू होने के बाद 15 वर्षों तक उपयोग में लाया जाना था, लेकिन इसे आज तक बढ़ाया जाता रहा है।

अंबेडकर जी के धार्मिक विचार और धर्मांतरण

हिंदू धर्म: डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवनकाल में हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था और अछूत प्रथा को तीव्र आलोचना का विषय बनाया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा:

Though I was born a Hindu, I will not die a Hindu.

उनकी किताब “Annihilation of Caste” (1936) में उन्होंने हिन्दू धर्म की सामाजिक व्यवस्था – विशेषकर मनुस्मृति – पर कठोर आलोचना की। उनका मानना था कि:
  • वर्ण व्यवस्था जन्म आधारित है, जो समानता और सामाजिक न्याय के विरुद्ध है।
  • शूद्रों और अछूतों को धर्म में समान अधिकार नहीं, न वेद पढ़ सकते थे, न मंदिर में जा सकते थे।
  • उन्होंने वर्तमान समय को देखते हुए व विशेषरूप से कुछ स्मृतियों का हवाला देते हुए कहा कि, “हिंदू धर्म जन्म के आधार पर श्रेष्ठता तय करता है, यह इंसान को इंसान नहीं मानता।”
  • उन्होंने मनुस्मृति दहन किया, क्योंकि उसमें दलितों के प्रति घोर भेदभाव है।

हिन्दू धर्म का समर्थन: बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने जो संविधान बनवाया उसमें भगवान राम-लक्ष्मण-सीता जी, भगवान श्रीकृष्ण व अर्जुन, भगवान बुद्ध व महावीर जी, भगवान नटराज व हनुमान जी की फोटो, महाराजा विक्रमादित्य व महाराजा भागीरथ जी की फोटो, अशोक सम्राट, गुरु गोबिंद सिंहगांधीजी का दांडी मार्च, गुरूकुल व नालंदा विश्वविद्यालय की फोटो और अन्य ऐतिहासिक घटनाएँ जैसे आज़ादी की लड़ाई को बहुत ही सुन्दर चित्रकारी के साथ शामिल किया गया था। इसे प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस और उनकी टीम ने विशेष भारतीय कला और संस्कृति को दर्शाने वाले चित्रों से सजाया था। 

इनका उद्देश्य था कि भारतीय संविधान सिर्फ कानूनों का दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतिनिधित्व भी करता है। 

क्या ये चित्र आज के संविधान में हैं?

जो संविधान सरकारी कार्यालयों या किताबों में पढ़ाया और उपयोग में लाया जाता है, वो मुद्रित (printed) होता है और उसमें ये चित्र नहीं होते। लेकिन भारत के संसद पुस्तकालय और राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखी गई मूल हस्तलिखित प्रति में ये चित्र आज भी सुरक्षित हैं।

मुस्लिम धर्म पर अम्बेडकर जी के विचार:
  • उनके द्वारा लिखित पुस्तक: भारत का विभाजन (Pakistan or the Partition of India)
  • उन्होंने लिखा कि मुस्लिम समाज भी जाति आधारित है और उसमें महिलाओं की स्थिति दयनीय है।
  • इस पुस्तक में वे इस्लाम को भी आलोचना के दायरे में लाए – “मुस्लिम राष्ट्रवाद, सांप्रदायिकता को बढ़ाता है।”
  • भीमराव अम्बेडकर जी ने कहा था कि मजहब के आधार पर भारत का विभाजन हो चुका है, इसलिए अब न मजहब के आधार पर कोई मंत्रालय, ना आयोग, ना कोई कॉलेज, ना यूनिवर्सिटी बनेगा। जो भी बनेगा वह सभी के लिए होगा। लेकिन कांग्रेस न संविधान में समय समय पर परिवर्तन करके कई संशोधन किए। 

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU)काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) दोनों लगभग एक साथ ही बने हैं, जहां BHU सभी के लिए खुला है मतलब सेक्यूलर (धर्मनिरपेक्ष) है, परन्तु AMU को कांग्रेस ने AMU Amendment Act, 1981 को लाकर संविधान में संशोधन करके "अल्पसंख्यक संस्थान (Minority Institution)" का दर्जा दे दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में कह चुका था कि चूंकि AMU की स्थापना सरकार द्वारा कानून बनाकर की गई थी, इसलिए इसे मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। फिर 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1981 के संशोधन को अवैध माना, फिर 2016 में मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया और आज भी वहां लटका हुआ है। 

बौद्ध धर्म अपनाना (14 अक्टूबर 1956):
  • उन्होंने कहा – “मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ, पर मरूंगा नहीं।”
  • बौद्ध धर्म को इसलिए चुना क्योंकि उनके हिसाब से यह तर्क, करुणा, समानता, और अंधविश्वास से परे है।

हिन्दू कोड बिल और विरोध

हिंदू कोड बिल क्या था?

डॉ. अंबेडकर जब स्वतंत्र भारत के कानून मंत्री बने, तो उन्होंने 1947 से एक “Hindu Code Bill” तैयार करना शुरू किया। इसका उद्देश्य था:

मुख्य प्रस्ताव:
  1. हिंदू स्त्रियों को संपत्ति में बराबरी का अधिकार
  2. मूल्यांकन योग्य तलाक का अधिकार (पहले केवल पुरुषों को यह स्वतंत्रता थी)
  3. गोद लेने और उत्तराधिकार के अधिकारों में समानता
  4. मोनोगैमी (एक विवाह नीति) को अनिवार्य बनाना
  5. अविभाजित हिंदू परिवार की संपत्ति में महिलाओं की भागीदारी
फायदे क्या हो सकते थे?
  • नारी सशक्तिकरण का पहला कानूनी आधार बनता।
  • हिंदू समाज में समानता और सुधार की शुरुआत होती।
  • स्त्रियों को अलग से ज्यादा मौलिक अधिकार देने का प्रयास था।
क्यों हुआ विरोध?
  • कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों और कई संसद सदस्यों को यह लगा कि यह हिंदू परंपराओं का विनाश है।
  • ब्राह्मण और उच्च जाति के नेता इसे "पश्चिमी मूल्यों की घुसपैठ" मानते थे।
  • डॉ. अंबेडकर का ये मानना था कि हिंदू समाज सुधार को अपनाने के लिए तैयार नहीं है
नतीजा:
  • अंततः कांग्रेस सरकार ने इसे टाल दिया।
  • अंबेडकर ने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया (10 अक्टूबर 1951)।

📜 इस्तीफे के बाद का उनका वक्तव्य

उन्होंने बेहद सख्त और स्पष्ट शब्दों में 1951 में इस्तीफे के समय सरकार की कार्यशैली पर गंभीर आलोचना की थी। उन्होंने यह बात अपने इस्तीफे के स्पीच में कही थी जो बाद में “Why I Resigned from the Cabinet” शीर्षक से प्रकाशित हुई। जिसमें से एक दो अंश यहां दिए गए हैं --

To leave inequality between class and class, between sex and sex, which is the soul of Hindu society untouched and to go on passing legislation relating to economic problems is to make a farce of our Constitution and to build a palace on a dung heap.
Translation: वर्ग और वर्ग के बीच, लिंग और लिंग के बीच असमानता को, जो हिंदू समाज की आत्मा है, को ज्यों का त्यों छोड़कर सिर्फ आर्थिक कानून बनाते रहें, तो यह संविधान का मज़ाक है और गोबर के ढेर पर महल बनाने जैसा है।

और उन्होंने यह भी कहा:
It is not possible for me to be a member of the Cabinet and not to do anything for the community to which I belong.
Translation: मेरे लिए यह संभव नहीं है कि मैं मंत्रिमंडल का सदस्य होते हुए भी उस समुदाय के लिए कुछ न करूं जिससे मैं आता हूं।

📘 यह कहां पढ़ा जा सकता है?
  • “Why I Resigned from the Cabinet” – Dr. B.R. Ambedkar
  • यह वक्तव्य अब भी Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches (BAWS), Vol. 12, में प्रकाशित है। (भारत सरकार द्वारा संकलित)
  • साथ ही ये भाषण राज्यसभा लाइब्रेरी, नेहरू मेमोरियल संग्रहालय, और अंबेडकर फाउंडेशन में भी उपलब्ध है।

क्या हिंदू धर्म वास्तव में उतना बुरा है जितना डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने माना?

यह सवाल बहुत संवेदनशील है और इसका उत्तर इतिहास, परंपरा और समसामयिक समाज को मिलाकर देखा जाना चाहिए।

तर्क जो यह सिद्ध करते हैं कि हिंदू धर्म में समता भी रही है:
  • श्रीराम और निषादराज – मित्रता व समानता का आदर्श:
    • राम ने अपने वनवास के समय निषादराज गुह को भाई जैसा सम्मान दिया।
    • शबरी (एक आदिवासी स्त्री) के जूठे बेर खाने को स्वीकार किया।
    • यह दिखाता है कि आदिकालीन रामायण काल में जातिगत भेदभाव इतना उग्र नहीं था।
  • महाभारत में विदुर, एकलव्य व कर्ण जैसे पात्र:
विदुर, एक दासीपुत्र होने के बावजूद नीति और विवेक के प्रतीक माने गए और महाराजा धृतराष्ट्र के महामंत्री भी थे।
एकलव्य को शिक्षा से वंचित किया गया – यह दिखाता है कि बाद में सामाजिक रूढ़ियाँ बनने लगीं, और जिन्होंने ( गुरू द्रोणाचार्य) उसे शिक्षा से वंचित किया, उन्होंने महारथी कर्ण को भी शिक्षा नहीं दी। यह भेदभाव सामाजिक दोष था, न कि धर्मशास्त्र आधारित। जबकि स्वयं श्रीकृष्ण ने उसे दानवीर और पराक्रमी योद्धा कहा। बाद में द्रोणाचार्य भी अन्याय का साथ देने के कारण युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हो गये।
  • ऋषि मांडव्य की कथा – मनुस्मृति की व्यवस्था के विरुद्ध ऐतिहासिक प्रमाण
ऋषि मांडव्य एक महान तपस्वी थे। एक बार चोर उनके आश्रम में शरण ले लेते हैं। राजा के सिपाही आते हैं और चोरों के साथ मांडव्य ऋषि को भी पकड़ लेते हैं। कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं होने के बावजूद कि उन्होंने वास्तव में चोरों का साथ दिया है या नहीं, केवल आंखों देखे सैनिकों के बताने के आधार पर राजा के आदेशानुसार उन्हें "शूलि (बलि की सजा)" पर चढ़ा दिया जाता है। यह दृष्टांत दर्शाता है कि उस समय दण्ड व्यवस्था सभी के लिए एक थी चाहे कोई भी हो।

श्रीमद्भगवत गीता में जाति आधारित भेदभाव को नकारा गया:
  • भगवद गीता 4.13: "चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः" – जन्म से नहीं, गुण और कर्म से वर्ण निर्धारित होता है।
भक्ति आंदोलन (15वीं-17वीं शताब्दी):
  • संत रविदास, कबीर, मीराबाई जैसे संतों ने जाति भेद को ठुकराया और भक्ति में समानता को प्रमुखता दी।
  • कबीर ने साफ कहा – "जात न पूछो साधु की…" 

तो भेदभाव कब और कैसे आया?

  • मनुस्मृति जो कि लगभग 200 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी तक रचित ग्रंथ है, जो सामाजिक नियमों और धर्म आधारित दंड संहिता को दर्शाता है जिसमें सत्य, संयम, पवित्रता, दया, दान, ब्रह्मचर्य, स्त्री की रक्षा और क्षमा जैसे गुणों की शिक्षा दी गई है, ठीक है परन्तु वर्ण-व्यवस्था में सवर्णों के तुष्टिकरण को कठोर रूप दे दिया गया।
  • विशेषकर गुप्तकाल और मध्यकाल में सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं ने वर्ण व्यवस्था को पुख्ता किया।
  • ब्राह्मणवादी सत्ता संरचना ने शूद्रों और अछूतों को पढ़ाई, मंदिर, प्रशासन से दूर कर दिया।

डॉ. अंबेडकर ने धर्म सुधार की बजाय धर्म परिवर्तन क्यों चुना?

उनका दृष्टिकोण:
  • वे कई वर्षों तक हिन्दू समाज को भीतर से सुधारने की कोशिश करते रहे – मंदिर प्रवेश आंदोलन, मनुस्मृति दहन, संसद में कानून लाना।
  • लेकिन जब उन्हें लगा कि हिंदू समाज में शूद्रों को कभी सम्मान नहीं मिलेगा, तब उन्होंने धर्म परिवर्तन का रास्ता चुना।
उन्होंने बौद्ध धर्म क्यों अपनाया?
  1. बुद्ध का दर्शन समानता पर आधारित है।
  2. बुद्ध ने जात-पात और यज्ञ-हवन की निंदा की।
  3. बौद्ध धर्म भारत में उत्पन्न हुआ, इसलिए उनका मानना था कि यह विदेशी धर्म नहीं हुआ।
  4. उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को 5 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया।

निष्कर्ष और संतुलित दृष्टिकोण

दृष्टिकोण सत्यता
डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक भेदभाव को मिटाने की
क्रांतिकारी कोशिश की!
✔️
समाज में हिंदू धर्म में भेदभाव की सच्चाई रही है! ✔️
परंतु हिंदू धर्म की मूल शिक्षाएं भेदभाव की समर्थक
नहीं हैं – रामायण, गीता आदि से प्रमाण!
✔️
सुधार संभव था, पर वह तत्कालीन समाज
द्वारा नहीं अपनाया गया!
✔️
धर्म परिवर्तन उनके लिए एक सामाजिक क्रांति थी! ✔️
वर्तमान में भी हिन्दू धर्म से विवादित प्रक्षिप्तांशों को हटा
दिया जाए तो, हिन्दू धर्म बिना किसी आलोचना
वाला धर्म हो जाएगा?
✔️

अम्बेडकर जी के अनमोल वचन

I like the religion that teaches liberty, equality and fraternity. - Dr. Ambedkar
Be Educated, Be Organised, and Be Agitated. - Dr. Ambedkar
Life should be great rather than long. - Dr. Ambedkar

मृत्यु और स्मृति स्थल

  • मृत्यु: 6 दिसंबर 1956, दिल्ली।
  • अंतिम संस्कार: मुंबई में दादर चौपाटी के पास “चैत्यभूमि” में हुआ।
  • वर्तमान स्थिति: चैत्यभूमि आज एक राष्ट्रीय स्मारक है, जहाँ हर साल 6 दिसंबर को लाखों लोग महापरिनिर्वाण दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि देने आते हैं।

CONCLUSION

डॉ. भीमराव अंबेडकर जी का जीवन एक ऐसी प्रेरणादायक गाथा है, जो न केवल संघर्ष और आत्मबलिदान की मिसाल है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन, न्याय और समानता की दिशा में अद्वितीय योगदान का प्रतीक भी है। एक अस्पृश्य माने जाने वाले बालक से लेकर भारत के संविधान निर्माण और स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बनने तक का उनका सफर यह दर्शाता है कि संकल्प, शिक्षा और संघर्ष के बल पर कोई भी व्यक्ति इतिहास रच सकता है। 

उन्होंने अपने जीवन में इतना ज्यादा भेदभाव झेला फिर भी संविधान निर्माण के समय उसमें उन्होंने ना ही किसी से भेदभाव की भावना को शामिल होने दिया, ना ही स्वयं किसी वर्ग विशेष से बदला लेने की भावना जैसे नियम संविधान में बनाया। उन्होंने न केवल दलितों और शोषितों के अधिकारों की आवाज़ उठाई, बल्कि समूचे भारतीय समाज की आत्मा को झकझोर कर उसे न्याय, समानता और बंधुत्व की ओर मोड़ा। जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता, स्त्री अधिकार, श्रमिक अधिकार, धार्मिक समानता और राजनीतिक न्याय – इन सभी क्षेत्रों में उन्होंने जो विचार और आंदोलन खड़ा किया, वह आज भी हमारे संविधान, कानून और सामाजिक चेतना में जीवित है।

भले ही उन्होंने अंततः हिंदू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया, परंतु उनका उद्देश्य धर्म परिवर्तन नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति था। उन्होंने बार-बार यह कहा कि वह धर्म के विरुद्ध नहीं हैं, परंतु उस धर्म के विरुद्ध हैं जो मानव को हीनता में बाँट दे।

डॉ. अंबेडकर का जीवन हमें यह सिखाता है कि केवल शिक्षा और ज्ञान ही समाज की जड़ों में फैली असमानता को काटने का औजार बन सकता है। उन्होंने स्वयं को न केवल अपने समाज के उद्धारक के रूप में सिद्ध किया, बल्कि भारतीय लोकतंत्र को नैतिक और वैचारिक आधार भी प्रदान किया।

आज जब हम सामाजिक समरसता, धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करते हैं, तो डॉ. अंबेडकर का चिंतन और संघर्ष हमारे लिए दिशा-सूचक दीपस्तंभ के समान है। इसलिए, बाबा साहेब का जीवन केवल इतिहास नहीं, बल्कि भविष्य की चेतना है। 

Post a Comment

IF YOU HAVE ANY SHAYARI OR YOUR FEEDBACK THEN PLEASE COMMENT.