नालायक नाकाम निकम्मा, सब कहते आवारा लड़का - कविता

सब कहते आवारा लड़का - कविता 

नालायक नाकाम निकम्मा, सब कहते आवारा लड़का

नालायक नाकाम निकम्मा, 
सब कहते आवारा लड़का ।
दुनिया के हर घर में अक्सर, 
मिलता ये बेचारा लड़का।

पहली बार गिरा था जब ये, 
रोने नहीं दिया दुनिया ने।
जिसका जीवन उसके मन का, 
होने नहीं दिया दुनिया ने।
लड़का है तू, लड़का है तू, 
कह कहकर पत्थर कर डाला,
आँसू पी पीकर बचपन से, 
हो जाता है ख़ारा लड़का।

घर की तंगी से वाक़िफ है, 
हर अरमान दबा बैठा है।
जाने क्या क्या अपने अंदर, 
ये नादान दबा बैठा है।
वक़्त यक़ीनन करवट लेगा, 
कष्टों की टूटेगी माला,
बोले बिना अभावों में ही, 
करता रहा गुजारा लड़का।

गैय्या दुहना चारा लाना, 
कब आराम किया करता है।
बड़की ताई मझली काकी, 
सबके काम किया करता है।
भाभी कहती रोज उसी से, 
कच्ची इमली लाओ लाला, 
देर लगाए बिना पहुँचता, 
जिसने जहाँ पुकारा लड़का।

हाय जवानी बैरन तूने,
कैसा है ये खेल रचाया।
प्यार किया जिस-जिसने सच्चा,
तूने उस-उसको तड़पाया।
खुद में ही खोया रहता है, 
हँसी ठिठोली करने वाला,
इश्क़ विश्क में टूट गया है, 
घर का एक सहारा लड़का।

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