Positive Quotes for best lifestyle
1. जिनका मूल (साधन) छोटा है और फल महान है, बुद्धिमान पुरुष उनको शीघ्र ही आरम्भ कर देता है, वैसे काम में वह विघ्न नहीं आने देता।
2. कच्चा (कम शक्ति वाला) होने पर पके (शक्ति संपन्न) की भातीं अपने को प्रकट करे। ऐसा करने से वह (राजा, मनुष्य) नष्ट नहीं होता।
3. निरर्थक बोलने वाला, पागल तथा बकवाद करने वाले बच्चे से भी सब ओर से उसी भांति तत्व की बात ग्रहण कर लेनी चाहिये, जैसे पत्थर में से सोना निकाला जाता है। धीर पुरुष को जहां तहां से भावपूर्ण वचनों, सूक्तियाँ और सत्कर्म का संग्रह करना चाहिए।
4. बुद्धिमान पुरुष को अधिक बलवान के सामने झुक जाना चाहिए।
5. सत्य से धर्म की रक्षा होती है, योग से विद्या की रक्षा होता है, सफाई से सुन्दर रूप की रक्षा होती है, सदाचार से कुल की रक्षा होती है, मैंले वस्त्र से स्त्रियों की रक्षा होती है।
अपने सुख के समय अधिक हर्षित व अधिक घमंडी ना होना, एवं दूसरे के दुख में न हंसना अथवा दूसरों को दुखी देखकर खुश न होना ही सदाचारी के लक्षण है वह इसी क्रिया का नाम सदाचार है।
6. न करने योग्य काम करने से, करने योग्य काम में प्रमाद करने से तथा कार्य सिद्ध होने के पहले ही मंत्र प्रकट हो जाने से डरना चाहिए और जिससे नशा चढ़े ऐसा पेय नहीं पीना चाहिए।
7. अच्छे वस्त्र वाला सभा को जीतता (अपना प्रभाव जमा लेता है), सवारी से चलने वाला मार्ग को जीत लेता है, शीलवान पुरुष सब पर विजय पा लेता है, पुरुष में शील ही प्रधान है जिसका वही नष्ट हो जाता है इस संसार में उसका जीवन, धन,, बंधुओं से कोई प्रयोजन नहीं है।
8. दरिद्र पुरुष सदा ही स्वादिष्ट भोजन करते हैं क्योंकि भूख ही स्वाद की जननी है, संसार में धनियों को भोजन पचाने की शक्ति नहीं होती किंतु दरिद्रों के पेट में काठ भी पच जाते हैं।
9. अधम पुरुषों को जीविका न रहने से भय लगता है, मध्यम श्रेणी के मनुष्यों को मृत्यु से भय लगता है परंतु उत्तम पुरुषों को अपमान से ही महान भय होता है।
10. ऐश्वर्य का नशा सबसे बुरा है, क्योंकि ऐश्वर्य के मद से मतवाला पुरुष भ्रष्ट हुए बिना होश में नहीं आता।
11. जो जीवों को वश में करने वाली सहज पांच इंद्रियों से जीत लिया गया, उसकी आपत्तियां शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की भांति बढ़ती हैं।
12. मनुष्य का शरीर रथ है, बुद्धि सारथी है, मन लगाम है, इंद्रियां उसके घोड़े हैं, आत्मा इसका सवार है। इनको वश में करके सावधान रहने वाला चतुर एवं बुद्धिमान पुरुष काबू में किए हुए घोड़ों से रथी की भातीं सुखपूर्वक यात्रा करता है।
13. जो चित्त के वशीभूत व विकार भूत पास इंद्रिय रूपी शत्रुओं को जीते बिना ही दूसरे शत्रुओं को जीतना चाहता है उसे शत्रु पराजित कर देते हैं।
14. दुष्टों का त्याग ना करने से व उनके साथ मिले रहने से निरापराध सज्जन भी समान ही दंड पाते हैं जैसे सूखी लकड़ी मिल जाने से गीली लकड़ी भी जल जाती है।
15. गुणों में दोष देखना, सरलता, पवित्रता, संतोष, प्रिय वचन बोलना, इंद्रिय दमन, सत्य भाषण तथा अचंचलता यह गुण दुरात्मा पुरुषों में नहीं होते।
16. आत्मज्ञान, खिन्नता का अभाव, सहनशीलता, धर्म परायणता, वचन की रक्षा, तथा दान मनुष्य के महान गुण हैं ।
17. गाली देने वाला पाप का भागी होता है और क्षमा करने वाला पाप से मुक्त हो जाता है।
18. दुष्टों का बल है हिंसा, राजाओं का बल है दंड देना, स्त्रियों का बल है सेवा और गुणवान वालों का बल है क्षमा।
19. मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है, किंतु वहीं यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है ।
20. देवता लोग जिसे पराजय देते हैं उसकी बुद्धि को पहले ही हर लेते हैं, विनाशकाल उपस्थित होने पर बुद्धि मलीन हो जाती है।
Positive Quotes in Hindi
21. सब तीर्थों में स्नान और सब प्राणियों में साथ कोमलता का बर्ताव यह दोनों एक ही समान है।
22. इस लोक में जब तक मनुष्य की पावन कीर्ति का गान किया जाता है तब तक वह स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है।
सौत वाली स्त्री, जुए में हारे जुआरी, भार ढोने से व्यथित शरीर वाले मनुष्य की रात में जो स्थिति होती है, वही स्थिति उल्टा (झूठा) न्याय देने वाले वक्ता की भी होती है।
23. सोने के लिए झूठ बोलने वाला भूत और भविष्य सभी पीढ़ीयों को नरक में गिराता है, पृथ्वी तथा नारी के लिए झूठ बोलने वाला तो अपना सर्वनाश कर डालता है।
24. देवता लोग चरवाहों की तरह डंडा लेकर पहरा नहीं देते, वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं, उसको उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं।
25. शराब पीना, कलह, समूह के साथ वैर, पति-पत्नी में भेद पैदा करना है रास्ता कुटुंबा बालों में भेद बुद्धि उत्पन्न करना, राजा के साथ द्वेष, बुरे रास्ते इन्हें त्याग देना चाहिए।
26. हस्तरेखा देखने वाला, चोरी करके व्यापार करने वाला, जुआरी, वैद्य, शत्रु, मित्र, चारण; इन सातों को कभी गवाह ना बनाएं।
27. बुढ़ापा सुंदर रूप को, आशा धीरता को, मृत्यु प्राणों को, दोष देखने की आदत धर्म आचरण को, क्रोध लक्ष्मी को, नीच पुरुषों की सेवा सत्स्वभाव को, काम लज्जा को,अभिमान को सर्वस्व नष्ट कर देता है।
28. शुभ कर्मों से लक्ष्मी की उत्पत्ति होती है, प्रगल्भता से बढ़ती है, चतुरता से जड़ जमा लेती और संयम से सुरक्षित रहती है।
29. 8 गुण पुरुष की शोभा बढ़ाते हैं- बुद्धि , कुलीनता, दम, शास्त्र ज्ञान, पराक्रम, बहुत न बोलना, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता।
30. यज्ञ, अध्ययन, दान, तप, क्षमा, दया, लोभ का अभाव; यह धर्म के आठ प्रकार के मार्ग बताए गए हैं।
31. जिस सभा में बड़े बूढ़े नहीं वह सभा नहीं, जो धर्म की बात न कहे वह बूढ़े नहीं।
32. बारंबार किया हुआ पाप बुद्धि को नष्ट कर देता है, जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह सदा पाप ही करता रहता है।
23. बारंबार किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है जिसकी बुद्धि बढ़ जाती है वह सदा पुण्य ही करता है।
24. दिनभर वह कार्य करें जिससे रात में सुख रहे, 8 महीने व कार्य करें जिससे वर्षा के 4 महीने सुख से व्यतीत कर सके , बाल्यावस्था में वह कार्य करें जिससे वृद्धावस्था में सुख पूर्वक रह सके और जीवन भर का कार्य करें जिसे मरने के बाद भी सुखी रह सके ।
25. बुद्धि से विचार कर किए हुए कर्म श्रेष्ठ होते हैं।
26. दूसरों से गाली सुनकर स्वयं उन्हें गाली ना दें, क्षमा करने वाले वालों का हुआ क्रोध ही गाली देने वाले को जला डालता है, और उसके पुण्य को भी ले लेता है।
27. जैसे वस्त्र जिस रंग में रंगा जाए वैसा ही हो जाता है, उसी प्रकार यदि कोई सज्जन, असज्जन, तपस्वी अथवा चोर की सेवा करता है तो उस पर उसी का रंग चढ़ जाता है ।
28. सज्जनों के घर में इन चार चीजों की कमी कभी नहीं होती- तृण का आसन, पृथ्वी, जल और चौथी मीठी वाणी।
29. मित्रों से कुछ भी ना मांगते हुए उनके सार असार की परीक्षा ना करें।
30. संताप से रूप नष्ट होता है, संताप से बाहुबल नष्ट होता है, संताप से ज्ञान नष्ट होता है, संताप से मनुष्य को रोग प्राप्त होता है।
31. सुख-दुख, उत्पत्ति, विनाश ,लाभ-हानि, जीवन मरण, यह बारी-बारी से प्राप्त होते हैं। इसलिए धीर पुरूष को इनके लिये हर्ष व शोक नहीं करना चाहिए ।
32. बुद्धि से मनुष्य अपने भय को दूर करता है, तपस्या से महान पद को प्राप्त करता है, गुरू सेवा उसे ज्ञान और योग शांति पाता है, जिसको धनवान व आरोग्यता प्राप्त है व भाग्यवान है क्योंकि इसके बिना वह मुर्दे के समान है ।
33. जो बिना रोग के उत्पन्न,कड़वा, सिर में दर्द पैदा करने वाला पाप से संबंध, कठोर तीखा और गरम है जो सज्जनो द्वारा पान करने योग्य है जिसे दुर्जन भी नहीं पी सकते - उस क्रोध को आप पी जाइए।
34. जो मनुष्य अपने साथ जैसा बर्ताव करें उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए। यदि समर्थ हो तब यही नीति है।
35. कुल की रक्षा के लिए एक मनुष्य का, ग्राम की रक्षा के लिए कुल का, देश की रक्षा के लिए गांव का , और आत्मा के कल्याण के लिए सारी पृथ्वी त्याग देनी चाहिए।
36. आपत्ति के लिए धन की रक्षा करें, धन के द्वारा स्त्री की रक्षा करें।
37. पहले कर्तव्य , आय व्यय और उचित वेतन आदि का निश्चय करके फिर सुयोग्य सहायकों का संग्रह करें क्योंकि कठिन से कठिन कार्य सहायकों द्वारा साध्य होते हैं।
38. जो सेवक स्वामी की आज्ञा देने पर उनकी बात का आदर नहीं करता, किसी काम में लगाए जाने पर इनका इंकार कर जाता है, अपनी बुद्धि पर गर्व करता है, इस प्रतिकूल वाले को शीघ्र ही त्याग देना चाहिए ।
39. अहंकार रहित, कायरता शून्य, शीघ्र कार्य पूरा करने वाला, दयालु, शुद्ध हृदय, दूसरों के बहकावे में न आने वाला ,निरोग और उदार वचन वादा; इन 8 गुणों से युक्त मनुष्य को दूत बनाने के योग्य बताया गया है।
40. सावधान! सायंकाल में शत्रु के घर ना जाएं, रात में छुपकर चौराहे पर खड़ा ना हो, अधिक दयालु राजा, व्यभीचारणी स्त्री, राज कर्मचारी, पुत्र, भाई, छोटे बच्चों वाली विधवा, सैनिक और जिस का अधिकार छीन लिया गया हो वह पुरुष, इन सब के साथ लेनदेन का व्यवहार ना करें।
41. नित्य स्नान करने वाले मनुष्य को बल, रूप, मधुर ,स्वर, उज्जन वर्ण, कोमलता, सुगंध, पवित्रता, शोभा, सुकुमार और सुंदर स्त्रियां; यह दस लाभ प्राप्त होते हैं।
42. थोड़ा भोजन करने वालों को निम्नांकित 6 गुण प्राप्त होते हैं- आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुंदर, संतान, यह बहुत खाने वाला ऐसा कहकर उस पर आक्षेप नहीं करते।
43. अकर्मण्य, बहुत खाने वाले, सब लोगों से बैर करने वाले, अधिक मायावी, क्रूर, देश काल का ज्ञान न रखने वाले, नंदित वेश धारण करने वाले मनुष्य को कभी घर में न ठहरने दें।
44. बहुत दुखी होने पर भी कृपण, गाली बकने वाले, मूर्ख, जंगल में रहने वाले, धूर्त, नीच से भी निर्दयी, बैर बाधने वाले और कृतघ्न से कभी सहायता की याचना नहीं करनी चाहिए।
45. ऐसा कौन बुद्धिमान होगा जो स्त्री, राजा, सापं, पढ़े हुए पाठ, सामर्थसाली व्यक्ति, शत्रु, भोग और आयुष्य पर पूर्ण विश्वास कर सकता है।
46. जिसको बुद्धि से प्रताणित किया गया है उस जीव के लिए ना कोई वैद्य है, न दवा है, न होम, न मंत्र, न कोई मांगलिक कार्य और न अथर्ववेदोक्त प्रयोग और न भलीभाती सिद्ध बूटी ही है।
47. मनुष्य को चाहिए कि वह सर्प, सिंह, अग्नि और अपने कुल में उत्पन्न व्यक्ति का अनादर न करें, क्योंकि यह सभी बड़े तेजस्वी होते हैं।
48. धीर पुरुष को चाहिए कि जब कोई साधु पुरुष अतिथि के रुप में घर पर आवे तो सबसे पहले आचमन देकर जल लाकर उसके चरण पखारे, फिर कुछ सब पूछ कर अपनी स्थिति बतावें, तदनन्तर आवश्यकता समझकर अन्न करावे।
49. वैद्य, चिर-फाड करने वाले जर्राह, ब्रह्मचर्य से भ्रष्ट, चोर, क्रूर, शराबी, गर्भहत्यारा, सेनाजीवी, वेद विक्रेता- ये पैर धोने के योग्य नहीं है, तथापि यह यदि अतिथी होकर आवें तो विशेष आदर के योग्य होते हैं।
50. समुद्र में गोता लगाने से यदि मोती हाथ ना लगे तो यह न समझो कि समुद्र में मोती नहीं है। यदि तुम्हारा प्रथम प्रयास निष्फल हो, तो भी ईश्वर का नाम लेकर निरन्तर प्रयास करते रहो!