मजबूरी पर बेहतरीन शेरों - शायरी
कुछ लुट गया, कुछ लुटा दिया।
कुछ मिट गया, कुछ मिटा दिया।।
जिन्दगी
ने कुछ यूं आजमाया हमें।
कुछ छिन गया, कुछ गवां दिया।।
जीना चाहा तो जिंदगी से दूर थे हम,
मरना चाहा तो जीने को मजबूर थे हम।
सर झुका कर कबूल कर ली हर सजा,
बस कसूर इतना था कि बेकसूर थे हम।।
मजबूरियों के नाम है जिंदगी,
कही सुबह तो कहीं शाम है जिंदगी।
आप
मुझे मजबूर ना करो इश्क करने को,
कहीं छुपी तो कहीं सरेआम है
जिंदगी.!!
ये मज़बूरी ही है जनाब,
जो अंदर से बेरहम बनाती है।
इससे बच के रहना जनाब,
ये इंसान को तबाह करने में,
बिलकुल भी नहीं हिचकिचाती है।।
किसी की मजबूरी कोई समझता नहीं !
दिल टूटे तो दर्द होता है, मगर हर कोई कहता नहीं !
उसकी बेवफाई के चर्चे सारे शहर मे थे,
उसकी मजबूरी उसके भीतर ही दफन
हो गई !
मजबूरी में जब कोई जुदा होता है,
जरूरी नहीं की हर वो सख्स बेवफा होता है।
दे कर वो आपकी आँखों में आँसू,
अकेले में आपसे भी ज्यादा रोता है !
क्या करें नशे में बहुत चूर थे हम..!
ऐ जिंदगी बहुत मजबूर थे हम।।
ऐसा नही है की वक्त ने मौका नहीं दिया,
हम आगे बढ़ सकते थे, पर तूने मजबूर किया !
कभी गम तो कभी ख़ुशी देखी,
हमने अक्सर मजबूरी और बेबसी देखी।
उनकी नाराज़गी को हम क्या समझें,
हमने तो खुद अपनी तकदीर की बेबसी देखी !!
क्या गिला करें तेरी मजबूरियों का हम,
तू भी इंसान है कोई खुदा तो नहीं।
मेरा वक़्त जो होता मेरे मुनासिब,
मजबूरिओं को बेच कर तेरा दिल खरीद लेता।।
होगी कोई मजबूरी उसकी भी,
जो बिन बताएं चला गया,
वापस भी आया तो किसी और का होकर आया !
आप की याद में रोऊं भी न मैं रातों को,
हूं तो मजबूर मगर इतना भी मजबूर नहीं।।
उसे चाहना हमारी कमजोरी है !
वो क्यू न समझते हैं हमारी खामोशी को।
उनसे कह न पाना हमारी मजबूरी है !
वक्त नूर को बेनूर कर देता हैं,
छोटे से जख्म को नासूर कर देता है।
कौन चाहता है अपने से दूर रहना,
पर वक्त सबको मजबूर कर देता हैं।।
थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ!
मैं बस की खिड़कियों से ये तमाशे देख लेता हूँ।
हिम्मत तो इतनी थी कि समुद्र भी पार कर सकते थे,
मजबूर इतना हुए कि दो बुंद आंसूओं ने डुबा दिया।
आप दिल से यूँ पुकारा ना करो !
हमको यूँ प्यार से इशारा ना करो,
हम दूर हैं आपसे ये मजबूरी है हमारी,
आप तन्हाइयों मे यूँ रुलाया ना करो !
हम मजबूरी में काम करते रहे हर वक्त।
जब लौट के आये तो कोई था ही नहीं हमारा।।
हरा सकती है! डरा सकती है!
वो मजबूरी है! इंसान से कुछ भी करा सकती है।
हमें सीने से लगाकर हमारी सारी कसक दूर कर दो।
हम सिर्फ तुम्हारे हो जाएँ हमें इतना मजबूर कर दो।।
बोझ उठाना किसी का शौक कहाँ है,
ये तो बस मजबूरी का सौदा है।
मजबूरियों की चादर ओढ़ कर निकलता हूं घर से,
वरना मुझे भी शौक था बारिशों में भीगने का।।
Majburi Shayari in Hindi
आपने मजबूर कर दिया,
जाने क्यों खुद से दूर कर दिया।
अब भी यही सवाल है दिल में,
हमने ऐसा क्या कसूर कर दिया।।
रिश्तों को निभाने की मजबूरी पुरानी है,
जिंदगी तो जैसे समझौतों की कहानी है।
दुनिया के अंदर तो धोखे का समंदर है,
यहाँ हम करते वफ़ा, तो मिलती बदनामी है।।
ऐसी भी क्या मजबूरी आ गई थी जनाब।
कि आपने हमारी चाहत का कर्ज धोका दे कर चुकाया!
बहाना बनाते है लोग, अपनी मजबूरी बताकर।
किसी का दिल भी टूट जाये,
तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें।
किसी की अच्छाई का इतना भी फायदा मत उठाओ !
कि वो बुरा बनने के लिए मजबूर हो जाये।
बहाना कोई तो दे ऐ जिंदगी !
कि जीने के लिए मजबूर हो जाऊँ।
वो हमेशा बात बनाती क्यों थी,
मेरी झुठी कसम खाती क्यों थी।
मजबूरियों का बहाना बना कर,
मुझसे हर रोज दामन छुड़ाती क्यों थी !
मजबूर इस दिल की धड़कन,
तुम सुनने की कोशिश तो करते।
जा रहा हूं दूर तुम्हारी जिंदगी से,
मुझे रोकने का दिखावा तो करते।।
कितने मजबूर हैं हम प्यार के हाथों,
ना तुझे पाने की औकात,
ना तुझे खोने का हौसला !
अपने टूटे हुए सपनों को बहुत जोड़ा,
वक्त और हालत ने मुझे बहुत तोड़ा।
बेरोजगारी इतने दिन तक साथ रही कि,
मजबूरी में हमने शहर तेरा छोड़ा !
हमने खुदा से बोला वो छोड़ के चले गये !
न जाने उनकी क्या मजबूरी थी।
खुदा ने कहा इसमें उसका कोई कसूर नहीं !
ये कहानी तो मैंने लिखी ही अधूरी थी।।
क्या गिला करें तेरी मजबूरियों का हम,
तू भी इंसान है कोई खुदा तो नहीं।
मेरा वक्त जो होता मेरे मुनासिब।
मजबूरियों को बेच कर तेरा दिल खरीद लेता।।
ये न समझ कि मैं भूल गया हूँ तुझे,
तेरी खुशबू मेरी सांसो में आज भी है।
मजबूरी ने निभाने न दी मोहब्बत,
सच्चाई तो मेरी वफा में आज भी है !
दोनों का मिलना मुश्किल है, दोनों हैं मजबूर बहुत।
उस के पाँव में मेहंदी लगी, तो मेरे पाँव में छाले हैं।
कभी गम तो कभी खुशी देखी,
हमने अक्सर मजबूरी और बेबसी देखी।
उनकी नाराजगी को हम क्या समझें,
हमने तो खुद अपनी तकदीर की बेबसी देखी !
क्यूँ करते हो वफा का सौदा,
अपनी मजबूरिओं के नाम पर।
मैं तो अब भी वो ही हूँ,
जो तेरे लिए जमाने से लड़ा था।।
इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी,
कि हम ने आह तो की उन से आह भी न हुई !
गिरे इंसान को उठाने आएं ना आए ये ज़माने वाले,
मजबूरी में पड़े इंसान से फायदा उठाने ज़रूर आएँगे।
मेरे दिल की मजबूरी को कोई इल्जाम न दे,
मुझे याद रख बेशक मेरा नाम न ले।
तेरा वहम है कि मैंने भुला दिया तुझे,
मेरी एक भी साँस ऐसी नहीं जो तेरा नाम न ले।।
हर इंसान यहां बिकता है,
कितना सस्ता या कितना महंगा।
यह उसकी मज़बूरी तय करती है।।
क्या बयान करें तेरी मासूमियत को शायरी में हम,
तू लाख गुनाह कर ले सजा तुझको नहीं मिलनी !
उसे हमने बहुत चाहा था पर पा न सके,
उसके सिवा ख्यालों में किसी और को ला न सके,
आँखों के आँसू तो सूख गये उन्हें देख कर,
लेकिन किसी और को देख कर हम मुस्कुरा न सके।।