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सियासत के अंधेरों में उजाला कौन लाएगा.. पढ़िए कुछ चुनिंदा सियासी शेर

ये मशहूर शायरों की कुछ चुनिंदा शायरी हैं जो सियासत की जटिलताओं और उसमें मौजूद भ्रष्टाचार को उजागर करती हैं।
नफ़रतों के ताज पहने हुए हैं सरदार, प्यार के नाम पर रोते हुए लाचार।

जावेद अख़्तर

सियासत को लहू पीने की लत है,
वर्ना मुल्क में सब ख़ैरियत है।

मुनव्वर राणा

राहत इंदौरी की शायरी!
सियासत की बिसातों पे वफ़ादार नहीं होते, जो होते हैं यहां पर वो वफ़ादार नहीं होते।

वसीम बरेलवी

ये सियासत भी क्या अजीब खेल है, यहां कोई दोस्त नहीं, सिर्फ़ फ़ायदे का मेल है।

अमीर क़ज़लबाश

सियासत ने ये कैसी रीत अपनाई है,
हर चेहरे पर नकाब,, और  सफाई है।

गुलज़ार

सियासत में इन्सानों की क़ीमत नहीं,
बस नोटों की गड्डियों की आदत नहीं।

अल्ताफ़ शब्बीर

सियासत के नशे में इंसानियत खो गई, रोटियों के चक्कर में इंसानियत सो गई।

बशीर बद्र

सियासत का धंधा भी अजीब है यहाँ, इन्सानों को बांट कर खा जाती है जहाँ।

जौन एलिया

सियासत के खेल में सबके चेहरे बेनकाब हैं, इंसानियत की कब्र पर बैठी फ़रेब की किताब है।

राहत इन्दौरी

सियासत के अंधेरों में उजाला कौन लाएगा, यहाँ तो हर कोई बस अपना घर जलाएगा।

निदा फ़ाज़ली

सियासत की चालें, वक़्त की ज़रूरत बन गई, हर शख़्स की ज़िंदगी में बेमानी सी हरकत बन गई।

मिर्ज़ा ग़ालिब

सियासत में हर चेहरा नकाब ओढ़े हुए, दिल में खंजर, हाथों में गुलाब ओढ़े हुए।

अख़्तर उल ईमान

मिर्जा गालिब की शायरी!