बेहतरीन 2 लाइन शायरी संग्रह
वसीम बरेलवी की 2 लाइन शायरी
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें,
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें।
तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है,
आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें।
प्यार के दुश्मन कभी तो प्यार से कह के तो देख,
एक तेरा दर ही क्या हम तो ज़माना छोड़ दें।
घोंसले वीरान हैं अब वो परिंदे ही कहाँ,
इक बसेरे के लिए जो आब-ओ-दाना छोड़ दें।
क़मर जलालाबादी की टू लाइन शायरी
कर लूंगा जमा दौलत ओ ज़र उस के बाद क्या,
ले लूँगा शानदार सा घर उस के बाद क्या।
मय की तलब जो होगी तो बन जाऊँगा मैं रिन्द,
कर लूंगा मयकदों का सफ़र उस के बाद क्या।
होगा जो शौक़ हुस्न से राज़ ओ नियाज़ का,
कर लूंगा गेसुओं में सहर उस के बाद क्या।
शे'र ओ सुख़न की ख़ूब सजाऊँगा महफ़िलें,
दुनिया में होगा नाम मगर उस के बाद क्या।
मौज आएगी तो सारे जहाँ की करूँगा सैर,
वापस वही पुराना नगर उस के बाद क्या।
इक रोज़ मौत ज़ीस्त का दर खटखटाएगी,
बुझ जाएगा चराग़े-क़मर उस के बाद क्या।
उठी थी ख़ाक, ख़ाक से मिल जाएगी वहीं,
फिर उस के बाद किस को ख़बर उस के बाद क्या।
शहज़ाद अहमद की बेहतरीन ग़ज़ल
रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया,
वो क्यूँ गया है ये भी बता कर नहीं गया।
वो यूँ गया कि बाद-ए-सबा याद आ गई,
एहसास तक भी हम को दिला कर नहीं गया।
यूँ लग रहा है जैसे अभी लौट आएगा,
जाते हुए चराग़ बुझा कर नहीं गया।
बस इक लकीर खींच गया दरमियान में,
दीवार रास्ते में बना कर नहीं गया।
शायद वो मिल ही जाए मगर जुस्तुजू है शर्त,
वो अपने नक़्श-ए-पा तो मिटा कर नहीं गया।
घर में है आज तक वही ख़ुश्बू बसी हुई,
लगता है यूँ कि जैसे वो आ कर नहीं गया।
तब तक तो फूल जैसी ही ताज़ा थी उस की याद,
जब तक वो पत्तियों को जुदा कर नहीं गया।
रहने दिया न उस ने किसी काम का मुझे,
और ख़ाक में भी मुझ को मिला कर नहीं गया।
वैसी ही बे-तलब है अभी मेरी ज़िंदगी,
वो ख़ार-ओ-ख़स में आग लगा कर नहीं गया।
'शहज़ाद' ये गिला ही रहा उस की ज़ात से,
जाते हुए वो कोई गिला कर नहीं गया।
कृष्ण बिहारी नूर की 2 लाइन शायरी
ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं,
और क्या जुर्म है पता ही नहीं।
इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं,
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं।
ज़िन्दगी! मौत तेरी मंज़िल है,
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं।
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे,
झूठ की कोई इन्तेहा ही नहीं।
ज़िन्दगी! अब बता कहाँ जाएँ,
ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं।
जिसके कारण फ़साद होते हैं,
उसका कोई अता-पता ही नहीं।
धन के हाथों बिके हैं सब क़ानून,
अब किसी जुर्म की सज़ा ही नहीं।
कैसे अवतार कैसे पैग़म्बर,
ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नहीं।
उसका मिल जाना क्या, न मिलना क्या,
ख़्वाब-दर-ख़्वाब कुछ मज़ा ही नहीं।
चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो,
आईना झूठ बोलता ही नहीं।
अपनी रचनाओं में वो है,
‘नूर’ संसार से गया ही नहीं।
हबीब जालिब की 2 लाइन शायरी
फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल,
शायद मिले ग़ज़ल का पता उस गली
में चल।
कब से नहीं हुआ है कोई शेर काम का,
ये शेर की नहीं है फ़ज़ा उस गली में
चल।
वो बाम ओ दर वो लोग वो रुस्वाइयों के ज़ख़्म,
हैं सब के सब अज़ीज़ जुदा
उस गली में चल।
उस फूल के बग़ैर बहुत जी उदास है,
मुझ को भी साथ ले के सबा उस गली में
चल।
दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें,
दुनिया के मशवरों पे न जा उस
गली में चल।
बे-नूर ओ बे-असर है यहाँ की सदा-ए-साज़,
था उस सुकूत
में भी मज़ा उस गली में चल।
'जालिब' पुकारती हैं वो शोला-नवाइयाँ,
ये
सर्द रुत ये सर्द हवा उस गली में चल।
शकील आज़मी की शायरी
तू नहीं
दिल में मगर तेरा निशां बाक़ी है,
बुझ गई आग मोहब्बत की धुआं बाक़ी
है।
मेरा विश्वास मुहब्बत से नहीं उठ सकता,
जब तलक शहर में फूलों
की दुकां बाक़ी है।
जिस जगह हमने कैलेंडर में जुदाई लिक्खी,
इक
मुलाक़ात की तारीख़ वहां बाक़ी है।
मैं तिरे बेवफ़ा होने से परेशान
नहीं,
दिल लगाने को अभी सारा जहां बाक़ी है।
शौकत फ़हमी की शायरी
दस्त-ए-ज़रूरियात में बटता चला गया,
मैं बे-पनाह शख़्स था
घटता चला गया।
पीछे हटा मैं रास्ता देने के वास्ते,
फिर यूँ हुआ कि
राह से हटता चला गया।
उजलत थी इस क़दर कि मैं कुछ भी पढ़े बग़ैर,
औराक़
ज़िंदगी के पलटता चला गया।
जितनी ज़ियादा आगही बढ़ती गई मिरी,
उतना
दरून-ए-ज़ात सिमटता चला गया।
कुछ धूप ज़िंदगी की भी बढ़ती चली गई,
और
कुछ ख़याल-ए-यार भी छटता चला गया।
उजड़े हुए मकान में कल शब तिरा
ख़याल,
आसेब बन के मुझ से लिपटता चला गया।
उस से त'अल्लुक़ात
बढ़ाने की चाह में,
'फ़हमी' मैं अपने-आप से कटता चला गया।
हसरत मोहानी की 2 लाइन शायरी
भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं,
इलाही
तर्क-ए-उल्फ़त पर वो क्यूँकर याद आते हैं।
न छेड़ ऐ हम-नशीं
कैफ़िय्यत-ए-सहबा के अफ़्साने,
शराब-ए-बे-ख़ुदी के मुझ को साग़र याद आते
हैं।
रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाए-नाकामी,
वो
दश्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं।
नहीं आती तो याद उन की
महीनों तक नहीं आती,
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं।
हक़ीक़त
खुल गई 'हसरत' तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की,
तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़ कर
याद आते हैं।
जिगर मुरादाबादी के 20 चुनिंदा शेर
1. दिल को सुकून
रूह को आराम आ गया,
मौत आ गई कि दोस्त का पैग़ाम आ गया।
2. सुब्ह तक
हिज्र में क्या जानिए क्या होता है,
शाम ही से मिरे क़ाबू में नहीं दिल
मेरा।
3. निगाहों का मरकज़ बना जा रहा हूँ,
मोहब्बत के हाथों लुटा
जा रहा हूँ।
4. नज़र मिला के मिरे पास आ के लूट लिया,
नज़र हटी थी
कि फिर मुस्कुरा के लूट लिया।
5. ज़ाहिर कुछ नहीं कहते मगर इरशाद होता
है,
हम उस के हैं जो हम पर हर तरह बर्बाद होता है।
6. कुछ खटकता तो
है पहलू में मिरे रह रह कर,
अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा।
7. इश्क़
की चोट दिखाने में कहीं आती है,
कुछ इशारे थे कि जो लफ़्ज़-ओ-बयाँ तक
पहुँचे।
8. रग रग में इस तरह वो समा कर चले गए,
जैसे मुझी को मुझ से
चुरा कर चले गए।
9. आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन,
बंध
जाए सो मोती है रह जाए सो दाना है।
10. लेके ख़त उन का किया ज़ब्त बहुत
कुछ लेकिन,
थरथराते हुए हाथों ने भरम खोल दिया।
11. जिस दिल को तुम
ने लुत्फ़ से अपना बना लिया,
उस दिल में इक छुपा हुआ नश्तर ज़रूर था।
12. उसी
को कहते हैं जन्नत उसी को दोज़ख़ भी,
वो ज़िंदगी जो हसीनों के दरमियाँ
गुज़रे।
13. मैं तो हर हालत में ख़ुश हूँ लेकिन उस का क्या इलाज,
डबडबा
आती हैं वो आँखें 'जिगर' मेरे लिए।
14. हम इश्क़ के मारों का इतना ही
फ़साना है,
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है।
15. ये
हुस्न-ओ-जमाल उन का ये इश्क़-ओ-शबाब अपना,
जीने की तमन्ना है मरने का
ज़माना है।
16. सीने से दिल अज़ीज़ है दिल से हो तुम अज़ीज़,
सब से
मगर अज़ीज़ है तेरी नज़र मुझे।
17. ये हुस्न ये शोख़ी ये करिश्मा ये
अदाएँ,
दुनिया नज़र आई मुझे तो क्या नज़र आया।
18. जा और कोई ज़ब्त
की दुनिया तलाश कर,
ऐ इश्क़ हम तो अब तिरे क़ाबिल नहीं रहे।
19. वो
लाख सामने हों मगर इस का क्या इलाज,
दिल मानता नहीं कि नज़र कामयाब
है।
20. एहसास-ए-आशिक़ी ने बेगाना कर दिया है,
यूँ भी किसी ने अक्सर
दीवाना कर दिया है।
गोपालदास नीरज की 2 लाइन शायरी
बदन पे जिस के शराफ़त
का पैरहन देखा,
वो आदमी भी यहाँ हम ने बद-चलन देखा।
ख़रीदने को
जिसे कम थी दौलत-ए-दुनिया,
किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा।
मुझे
मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी,
कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन
देखा।
बड़ा न छोटा कोई फ़र्क़ बस नज़र का है,
सभी पे चलते समय एक
सा कफ़न देखा।
ज़बाँ है और बयाँ और उस का मतलब और,
अजीब आज की
दुनिया का व्याकरन देखा।
लुटेरे डाकू भी अपने पे नाज़ करने लगे,
उन्होंने
आज जो संतों का आचरन देखा।
जो सादगी है कुहन में हमारे ऐ 'नीरज',
किसी
पे और भी क्या ऐसा बाँकपन देखा।
फ़रहत एहसास की शायरी
तुम्हें उस
से मोहब्बत है तो हिम्मत क्यूँ नहीं करते,
किसी दिन उस के दर पे
रक़्स-ए-वहशत क्यूँ नहीं करते।
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस
से,
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते।
तुम्हारे दिल
पे अपना नाम लिक्खा हम ने देखा है,
हमारी चीज़ फिर हम को इनायत क्यूँ
नहीं करते।
मिरी दिल की तबाही की शिकायत पर कहा उस ने,
तुम अपने घर
की चीज़ों की हिफ़ाज़त क्यूँ नहीं करते।
बदन बैठा है कब से
कासा-ए-उम्मीद की सूरत,
सो दे कर वस्ल की ख़ैरात रुख़्सत क्यूँ नहीं
करते।
क़यामत देखने के शौक़ में हम मर मिटे तुम पर,
क़यामत करने
वालो अब क़यामत क्यूँ नहीं करते।
मैं अपने साथ जज़्बों की जमाअत ले के
आया हूँ,
जब इतने मुक़तदी हैं तो इमामत क्यूँ नहीं करते।
तुम अपने
होंठ आईने में देखो और फिर सोचो,
कि हम सिर्फ़ एक बोसे पर क़नाअ'त क्यूँ
नहीं करते।
बहुत नाराज़ है वो और उसे हम से शिकायत है,
कि इस
नाराज़गी की भी शिकायत क्यूँ नहीं करते।
कभी अल्लाह-मियाँ पूछेंगे तब उन
को बताएँगे,
किसी को क्यूँ बताएँ हम इबादत क्यूँ नहीं करते।
मुरत्तब
कर लिया है कुल्लियात-ए-ज़ख़्म अगर अपना,
तो फिर 'एहसास-जी' इस की
इशाअ'त क्यूँ नहीं करते।
नसीर तुराबी की 2 लाइन शायरी
मिलने की तरह मुझ से
वो पल भर नहीं मिलता,
दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता।
ये
राह-ए-तमन्ना है यहाँ देख के चलना,
इस राह में सर मिलते हैं पत्थर नहीं
मिलता।
हमरंगी-ए-मौसम के तलबगार न होते,
साया भी तो क़ामत के बराबर
नहीं मिलता।
कहने को ग़म-ए-हिज्र बड़ा दुश्मन-ए-जाँ है,
पर दोस्त
भी इस दोस्त से बेहतर नहीं मिलता।
कुछ रोज़ 'नसीर' आओ चलो घर में रहा
जाए,
लोगों को ये शिकवा है कि घर पर नहीं मिलता।
परवीन शाकिर की शायरी
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे,
चाँद के हमराह हम हर
शब सफ़र करते रहे।
रास्तों का इल्म था हम को न सम्तों की ख़बर,
शहर-ए-ना-मालूम
की चाहत मगर करते रहे।
हम ने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर को,
तेरे
जाने की ख़बर दीवार-ओ-दर करते रहे।
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम
भी,
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे।
आज आया है हमें भी उन
उड़ानों का ख़याल,
जिन को तेरे ज़ो'म में बे-बाल-ओ-पर करते रहे।
मोहब्बत
कर के वो वक्त पर मुक़र गया।
सोचती रह गई दुनियां कांरवा गुज़र गया।।
होती
है मोहब्बत की आशिकी में तू तू में।
ऐसे में हवा गरम चली प्यार झुलस
गया।।
करुं क्या मन फिर भी गाफिल टूट गई हूं।
इश्क में मरी जाउं
दिल पागल मचल गया।।
लियाक़त अली आसिम की 2 लाइन शायरी
दश्त की तेज़ हवाओं
में बिखर जाओगे क्या,
एक दिन घर नहीं जाओगे तो मर जाओगे क्या।
पेड़
ने चाँद को आग़ोश में ले रक्खा है,
मैं तुम्हें रोकना चाहूँ तो ठहर
जाओगे क्या।
ये ज़मिस्तान-ए-त'अल्लुक़ ये हवा-ए-क़ुर्बत,
आग ओढ़ोगे
नहीं यूँही ठिठर जाओगे।
ये तकल्लुम भरी आँखें ये तरन्नुम भरे होंट,
तुम
इसी हालत-ए-रुस्वाई में घर जाओगे क्या।
लौट आओगे मिरे पास परिंदे की
तरह,
मिरी आवाज़ की सरहद से गुज़र जाओगे क्या।
छोड़ कर नाव में
तन्हा मुझे 'आसिम' तुम भी,
किसी गुमनाम जज़ीरे पे उतर जाओगे क्या।
राहत इंदौरी के 20 चुनिंदा शेर..
1. तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार
करो,
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो।
2. गुलाब,
ख़्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या है,
मैं आ गया हूं बता इंतज़ाम क्या
क्या है।
3. अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है,
जो गरीबों से पसीने
की कमाई मांगे।
4. जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे,
मैं
कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे।
5. फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का
व्यापार करो,
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो।
6. आँख
में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत
सारी रखो।
7. उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है,
बहुत हसीन है
दुनिया इसे ख़राब करूं।
8. बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर,
जो
मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं।
9. किसने दस्तक दी, दिल पे, ये
कौन है,
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है।
10. ये हादसा तो किसी दिन
गुजरने वाला था,
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था।
11. मेरा
नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना,
मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था।
12. अंदर
का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए,
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए।
13. कॉलेज
के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए,
चारों तरफ़ दरिया की सूरत
फैली हुई बेकारी है।
14. कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे,
जहाँ
जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे।
15. रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल
पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है।
16. हम से पहले
भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे,
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।
17. मोड़
होता है जवानी का सँभलने के लिए,
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं
हैं।
18. नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से,
ख़्वाब आ आ के
मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं।
19. एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में
उसे,
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के।
20. इन रातों से अपना
रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है,
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर
बिखरे हैं।
कुंवर बेचैन की 2 लाइन शायरी
दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की
कहानी लिखना,
जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना।
कोई उलझन ही
रही होगी जो वो भूल गया,
मेरे हिस्से में कोई शाम सुहानी लिखना।
आते
जाते हुए मौसम से अलग रह के ज़रा,
अब के ख़त में तो कोई बात पुरानी
लिखना।
कुछ भी लिखने का हुनर तुझ को अगर मिल जाए,
इश्क़ को अश्कों
के दरिया की रवानी लिखना।
इस इशारे को वो समझा तो मगर मुद्दत बा'द,
अपने
हर ख़त में उसे रात-की-रानी लिखना।
हसीब सोज़ की शायरी
बहुत मज़े
में हूं जब से ये धंधा छोड़ दिया,
उमीदें बांध के घर से निकलना छोड़
दिया।
ये ख़्वाब था मेरे बच्चों के ख़्वाब पूरे हों,
सो अपने आप को
मैंने अधूरा छोड़ दिया।
तिरा जवाब नहीं भीख मांगने वाले,
किसी के
इश्क़ में तूने ख़ज़ाना छोड़ दिया।
वो जिसकी बात पे बरसों से यार प्यासा
था,
मलाल ये है कि उसने भी प्यासा छोड़ दिया।
थे रात ख़्वाब में
अपने भी और पराए भी,
खुली जो आंख तो सबने अकेला छोड़ दिया।
दुष्यंत कुमार की 2 लाइन शायरी
पक गई हैं आदतें बातों से सर होगी नहीं,
कोई हंगामा
करो ऐसे गुज़र होगी नहीं।
इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो,
धूप
अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं।
बूँद टपकी थी मगर वो बूँदो बारिश और
है,
ऐसी बारिश कि कभी उनको ख़बर होगी नहीं।
आज मेरा साथ दो वैसे
मुझे मालूम है,
पत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं।
आपके
टुकड़ों के टुकड़े कर दिये जायेंगे पर,
आपकी ताज़ीम में कोई कसर होगी
नहीं।
सिर्फ़ शायर देखता है क़हक़हों की असलियत,
हर किसी के पास तो
ऐसी नज़र होगी नहीं।
अदम गोंडवी की 2 लाइन शायरी
बेचता यूँ ही नहीं है
आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को।
सब्र की इक हद
भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान
को।
शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून,
पेट के भूगोल में
उलझे हुए इंसान को।
पार कर पाएगी ये कहना मुकम्मल भूल है,
इस अहद
की सभ्यता नफ़रत के रेगिस्तान को।