गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से - साहिर लुधियानवी की मशहूर ग़ज़ल

साहिर लुधियानवी की मशहूर ग़ज़ल

साहिर लुधियानवी, भारत के एक प्रसिद्ध शायर और गीतकार थे। उनका असली नाम अब्दुल हई था और उनका जन्म 8 मार्च 1921 को लुधियाना में हुआ था। उन्होंने अपने लेखन में प्रेम, समाज और राजनीति के विषयों को बड़ी खूबसूरती से पिरोया। 

उनकी प्रसिद्ध कृतियों में "ताजमहल" और "परछाइयाँ" शामिल हैं। साहिर ने कई मशहूर हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखे, जिनमें "कभी-कभी", "प्यासा" और "गुमराह" प्रमुख हैं। उनके लेखन की संवेदनशीलता और गहराई ने उन्हें अद्वितीय स्थान दिलाया। 

Sahir ludhianvi gajal

साहिर लुधियानवी का निधन 25 अक्टूबर 1980 को हुआ। चूंकि उन्होंने कई बेहतरीन ग़ज़ल भी लिखे, जो आज भी इंटरनेट और सोशल मीडिया पर धूम मचा रही हैं। उनकी ही एक प्रसिद्ध गजल नीचे दी जा रही है:

तंग आ चुके हैं कश्मकश-ए-ज़िंदगी से हम, 
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम।

मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए, 
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम।

लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उम्मीद, 
लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम। 

उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले,
जो दब गए हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी से हम। 

गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से,
पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम। 

अल्लाह-रे फ़रेब-ए-मशिय्यत कि आज तक, 
दुनिया के ज़ुल्म सहते रहे ख़ामोशी से हम।।
साहिर लुधियानवी

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