Munawar faruqui love shayari
तेरी सूरत साफ शीशे की तरह,
मेरे दामन में तो दाग हजारों हैं।
तू नायाब किसी पत्थर की तरह,
मेरा उठना बैठना तो बाजारों में है।
रहमत हजार लेकिन मोहब्बत से महरूम रहूंगा,
मत पूछो मुझसे, शिकायत उनकी खुदा से करूँगा।
मेरे नाम का जिक्र हो तो दुआ भेजना सुकून की,
मैं मुन्नवर मरने के बाद भी तो मशहूर रहूंगा !!
टूटने से इनकी खविश होती पूरी,
सभी कहते है मैं सितारा बन गया हूँ !!
दिल में है घर यहां पर घर नहीं है यहां,
खुद को पाया हूं मैं पर अपने में नहीं है यहां।
सिरहाना खाली मुझे बस याद तेरी आ रही,
भूख तो है मर चुकी बस फिकर तेरी खा रही।
बाजारों में रौनक लौट आई है,
लगता है वो बेपर्दा बाजार आई है !!
रुसवा तो तूझे भी कर दूं,
लेकिन बाकी मुझे अभी भी याद है।
पूरा शहर तो मेरा मुरीद है,
बस तेरा मुहल्ला मेरे खिलाफ है।।
मेरा ख्वाब जागेगा मेरी नींद भरी आंखों में,
आंख लगे तो थाम लेना साथ मेरा !!
बता दो बाजार कोई, जहां वफ़ा मिले,
जहां मैं बेचूं खुशी और गम साला नफा मिले!!
न मैं कभी देखता आगे क्या मुसीबत है,
मेरे पीछे काफिले है चलते दुआओं के !!
खाली दिल खाली हाथ यादों से भरा मकान रक्खा है।
मुस्कुराओ भी तो झूठे हो तुम,
ना जाने क्या हाल बना रखा है।
तुम ज़िद पर बैठे हो मेरा नाम नहीं लोगे,
फिर यूं याद करके हिचकियाँ क्यों दे रहे हो !!
कुछ रास्ता लिख देगा, कुछ में लिख दूंगा,
तुम लिखते जाओ मुश्किलें मैं मंज़िल लिख दूंगा।
हर जगह बड़े मायूस से चेहरे नजर आ रहे,
लगता है उसने सजना संवरना बंद कर दिया!!
कहना शायद मुश्किल होगा,
तुझे मैं कितना चाहता हूँ। पर तुझे
आने वाली हिचकियों के लिए माफी चाहता हूँ!!
कितने दिल दुखाओगे बस करो,
ये काला काजल लगाना बस करो।
एकबार अगर देख ली जुल्फें खुली किसी ने
मर जाएंगे कई, वो सुनो बाल बांध लो !!
कोई बचा नहीं ज़मीन पर,
लायक-ए-एतबार मेरा।
लेकिन तेरे हर सितम का गवाह
मैंने पूरा आसमां रक्खा है।।
फल ही इतने लगे हुए थे इस पेड़ पर,
लोगों का पत्थर मारना लाजमी था !!
तेरा काम जलाना सही, पर
मेरा काम बुझाना रहेगा।
तुझमें - मुझमें फर्क है छोटे जो हमेशा रहेगा!!
वो झूठे वादे करते हैं मगर मिलने नहीं आते,
हम भी कम्बख़त इश्क़ से बाज नहीं आते!!
वो गुमनामी में जी रहे है खुदकी वफ़ा की,
उन्हें बस मेरी कोई याद मत दिलाना !!
वो राज की तरह मेरी बातों में था,
जुगनू जैसे मेरी काली रातों में था।
किस्सा क्या सुनाऊं तुम्हें कल रात का,
सितारों की भीड़ में वो चांद मेरे हाथों में था !!
मैं फरेब से फरेब कर लूं,
तेरे बाद खुद को कैद कर लूं।
तुझे भी इश्क था मेरी इस लिखाई से,
क्या इस खूबी को अब मैं भी ऐब कर लूं?
मैं अपने करवटों का हिसाब लिए बैठा हूँ,
मैं राजदार उनका राज लिए बैठा हूँ।
नहीं गरज अब कोई परछाई बने मेरी,
मैं तो अपने सायों से नफरत किये बैठा हूँ!!
खड़ा बुलन्दी पे खुदा लाख शुक्र करूं,
आमाल खास नहीं तो आख़िरत की फिक्र करूं।
उज़्को शायद पसंद है मेरा टूटना,
मुसीबत भेजता है ताकि उनका जिक्र करूं!!
मंजिल के नशे में मैं घर छोड़ आया,
वो मुझे नशे में देख कर घर ले आये।
अपनी ज़ात से तंग सामान पीछे छोड़ आया ,
मेरे खाली कंधे देख वो रिश्तों का बोझ ले आये।